16th August 2016
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जैसा की हम सभी जानते हैं कि संगीत की कोई भाषा नहीं होती| इंसान किसी भी भाषा का हो संगीत के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाता और संगीत के इसी खास अनोखे आकर्षण की वजह से कोई भी भाषा संगीत प्रेमी के लिए रूकावट नहीं हो सकती|
संगीत की इसी जादूई विशेषता को ध्यान में रखते हुए औरो मीरा की हिंदी अध्यापिकाओं के लिए हरविंदर दीदी द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गयी| कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य ये समझना था कि कैसे संगीत (गायन) द्वारा हम हिंदी भाषा को सीखना और अधिक रुचिकर व् आसान बना सकते हैं| कार्यशाला के दौरान अध्यापिकाओं ने ये जाना कि कैसे हिंदी के गीतों के सुंदर बोलों के द्वारा न केवल हम बच्चों का उच्चारण शुद्ध करने में सहायता कर सकते हैं बल्कि भाषा व्याकरण का अभ्यास भी करा सकते हैं, जैसे मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची आदि|
कार्यशाला का प्रारंभ श्रुति के महत्त्व की चर्चा से हुआ| अध्यापिकाओं ने समझा कि कैसे किसी भी भाषा को सीखने की प्रक्रिया में श्रुति अर्थात सुनना कितना महत्वपूर्ण है| अतः कहने का सार यह है कि भाषा किस रूप में व् किस प्रक्रिया से सीखी जा रही है| दीदी के मार्गदर्शन से अध्यापिकाओं ने गीतों की एक सारणी भी बनायीं जिसे वे अपने पाठ्यक्रम में इस्तेमाल करके हिंदी शिक्षण को अधिक प्रभावशाली व् रुचिकर बना सकती हैं|